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________________ श्रीकृष्ण-कथा-नवकार मन्त्र का दिव्य प्रभाव ४६ रखा । जव मैंने अपने नगर आने की इच्छा प्रकट की तो उन दोनो विद्याधरो ने मुझे अपनी वहन गधर्वसेना देते हुए बताया कि दीक्षा लेते समय हमारे पिता ने हमसे कहा था कि 'एक ज्ञानी ने गधर्वसेना का विवाह भूमिगोचरी यदुवशी क्षत्रिय के साथ होना बताया है । इसलिए इसे चारुदत्त को दे देना।' अव आप इसे अपने साथ ले जाइये। मैने भी सोचा कि ले चलूं, मेरा क्या जाता है। किन्तु पुन. -~-मैं कैसे जानूँगा कि यही गधर्वसेना का पति है। विद्याधरो ने कहा -हमारी वहन वीणा-वादन और सगीत विद्या मे अति निपुण है। इस विद्या मे इसे पराजित करने वाला वसुदेव कुमार ही है और कोई नही। मैंने गधर्वसेना को साथ ले जाने की स्वीकृत दे दी। तभी वह पहले वाला देव' और विद्याधर मुझे विमान मे बिठाकर यहाँ लाये और मोती, माणिक आदि रत्न तथा करोडो स्वर्ण मुद्राएँ देकर अपनेअपने स्थानो को चले गये। प्रात काल मैं अपने स्वार्थी मामा, पत्नी मित्रवती और अखडवेणी वधवाली वेश्या वसतसेना से मिला और सुख से रहने लगा। हे वसुदेव कुमार । यही है गंधर्वसेना का वश परिचय और न बताने पर भी तुम्हारा नाम जानने का कारण । अव तुम वणिक पुत्री समझ कर इसका निरादर मत करना । यह सपूर्ण कथा कहकर सेठ चारुदत्त चुप हो गया। गधर्वसेना का वश परिचय पाकर वसुदेव हर्षित हुए। उनकी प्रीति और भी बढ गई। -त्रिषष्टि०८/२ -वसुदेव हिंडी, गन्दर्भदत्ता लभक १ उस मेटे का जीव जिसे चारुदत्त ने मरते समय नवकार मन सुनाया था। २. चारुदत्त के वियोग मे वसन्तसेना ने अपनी वेणी नही बाँधी थी। इसी-- लिए उसे अखण्ड वेणीवध वाली कहा गया है।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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