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________________ नवकार मन्त्र का दिव्य प्रभाव एक दिन वसुदेव कुमार ने पूछ ही लिया - - तेठजी ! आपने मेरा नाम और वश कैसे जाना है गधर्वसेना के विगत जीवन का ? क्या रहस्य सेठ चारुदत्त ने उत्तर दिया -कुमार । ध्यान से सुनो। मै तुम्हे पूरी घटना सुनाता हूँ । इसी चपानगरी मे भानु नाम का एक सेठ रहता था । उसके सुभद्रा नाम की एक पुत्री तो थी किन्तु पुत्र कोई नही । पुत्र की चिन्ता मे वह दुखी रहता था। एक बार उसने किसी चारण मुनि से पूछा- प्रभो मुझे पुत्र प्राप्ति होगी या नही । मुनिराज ने बताया'होगी'। उसके बाद मेरा जन्म हुआ । एक दिन मैं अपने मित्रो के साथ सागर तट पर क्रीडा करने गया। वहाँ मुझे दो जोडी पद- चिन्ह दिखाई दिये। उनमे से एक पुरुष के चिन्ह थे और दूसरी स्त्री के । उत्सुकतावश मैं पद चिन्हो को देखता - देखता आगे चला तो वे पद चिन्ह एक कदलीकुज मे जाकर समाप्त हो गये थे । कदलीकुज मे झॉक कर देखा तो पुष्प शैया व ढालतलवार दिखाई दी और उनके पास ही तीन छोटी-छोटी पोटलियाँ | मै इतना तो समझ गया कि यहाँ एक पुरुष और एक स्त्री आये थे; पर अब वह दोनो कहाँ चले गये, यह जिज्ञासा मेरे मन मे उठ रही थी । उन्हें ढूँढने आगे चला तो क्या देखता हूँ कि मोटे वृक्ष के तने से एक पुरुष लोहे की कीलो से विधा पडा है। किसी ने उसे अचेत करके वृक्ष के तने के सहारे खडा किया और कीले ठोक दी । उस पुरुष पर मुझे वडी दया आई। मै उसे बन्धन मुक्त करने का उपाय सोचने लगा । आयु भो मेरी छोटी थी। अभी किशोर ही ३७
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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