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________________ जैन कथामाला भाग ३१ उमी गत के अधेरे मे ग टिका से अपना रूप पन्विर्तित करके वे महल से बाहर निकल गये । नगर से बाहर निकल कर वसुदेव कुमार उमगान पहुँचे और वहाँ किमी अनाथ शव को एक चिता मे डाल दिया। इसके बाद उन्होने लिग्वा-'लोगो ने गस्जनो के सामने मेरे गुण को दोप रूप में प्रकट किया और अग्रज ने भी उन पर विश्वास कर लिया इसलिए मैं लोकापवाद के कारण अग्नि में प्रवेश करता हूँ। सभी मेरे दोपो को क्षमा करे।' यह लिखकर उन्होने एक स्तभ' पर लटका दिया और स्वय ब्राह्मण का वेग बना कर आगे चल दिये। कुछ समय तक मार्ग मे भटकने के बाद वे सही रास्ते पर आये । तभी रथ मे बैंठी किमी स्त्री ने उन्हे देखा । वह अपने पिता के घर ‘जा रही थी। स्त्री ने अपनी माता से कहा___-माँ । यह ब्राह्मण बहुत थका दिखाई पडता है। इसे रथ मे विठा लो। माता ने स्वीकृति दे दी और वे दोनो रय मे विठा कर वसुदेव कुमार को अपने ग्राम ले आई । स्नान भोजन आदि से निवृत्त होकर ब्राह्मण रात को किसी यक्ष मन्दिर मे जा सोया। y दूसरे दिन प्रात काल बसुदेव कुमार गौर्यपुर के राज महल मे न मिले तो चारो ओर उनकी खोज प्रारम्भ हो गई। गज्य कर्मचारी और प्रजाजन उन्हे ग्बोजते हुए उमशान आ ‘पहँचे । उमगान मे एक स्तम्भ पर उनके हाथ का लिखा हुआ पत्र और समीप ही अधजला विकृत-सा शव दिखाई दिया । १ उनर पुराण मे घोडे के गने मे बांधने का उल्व है। साथ ही उसमे ये शब्द और है---इस लोकापवाद ने मृत्यु अच्छी इमलि ए मैं अग्नि प्रवेश करता हूँ। [उत्तर पुराण ७०/२४२]
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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