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________________ जैन कथामाला भाग ३३ खमण का पारणा था एक दिन मृग के सकेत से मुनि एक रथवाले के पास पहुँचे । मासरथवाला मुनि को देखकर अति प्रसन्न हुआ । विह्वल होकर वह चरणो मे गिर पडा । उदार भावना से उसने आहारदान दिया । मृग सोच रहा था - रथवाला कितना भाग्यशाली है जो मुनि को दान दे रहा है। मुनि विचार रहे थे – यह श्रावक उत्तम बुद्धि वाला और भद्र-परिणामी है । ३४४ तीनो अपने विचारो में लीन थे कि वृक्ष की एक मोटी शाखा टूट कर अचानक ही गिर पडी और तीनो उसके नीचे दव गए । शुभध्यान से देह त्यागकर तीनो ब्रह्मदेवलोक के पद्मोत्तर नामक विमान मे उत्पन्न हुए । - त्रिषष्टि० ८ / ११-१२ -अन्तकृत, वर्ग ५
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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