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________________ રૂ૪૨ जैन कथामाला . भाग ३३ -हे वलभद्र । मैं पूर्वजन्म मे आपका सारथी था। सयम पालन के फलस्वरूप स्वर्ग मे देव हुआ हूँ। प्रव्रज्या की अनुज्ञा देते हुए आपने मुझसे कहा कि उचित अवसर पर प्रतिवोध देना। मै इसीलिए आपके पास आया हूँ। आप इस अनर्थकारी मोह को त्यागिए, यथार्थ को पहचानिए और इस गव का अन्तिम सस्कार करके सयम पालन कीजिए। भगवान अरिष्टनेमि ने जो भविष्य कथन किया था, वैसा ही हुआ । इनकी मृत्यु जराकुमार के वाण से हुई है और भातृमोह के कारण छह माह से इस शव को आप ढो रहे है। सिद्धार्थ के प्रतिबोध से बलभद्र की सुप्त चेतना जागृत हुई । मोह का पर्दा हटा और उन्होने मृत देह का अन्तिम सस्कार कर दिया। उसी समय सर्वज सर्वदर्गी भगवान ने बलभद्र की इच्छा जानकर एक विद्याधर मुनि को वहाँ भेजा। मुनि ने धर्मोपदेश दिया और बलभद्र प्रव्रजित हो गए । सिद्धार्थ देव ने मुनियो को भावपूर्वक नमन किया और स्वर्गलोक को चला गया। प्रवजित होकर मुनि बलभद्र घोर तपस्या करने लगे। एक बार मासखमण के पारणे हेतु वे किसी नगर में प्रवेश कर रहे थे। वही कुए पर पानी भरने के लिए एक महिला आई थी। का अन्तिम संस्कार करने का निवेदन करते है। किंतु बलभद्र कुपित हो जाते है। तव पाडव उनकी (बलभद्र की) इच्छानुसार चलने लगे। वर्षावास (चातुर्माम) के पश्चात जव श्रीकृष्ण के शरीर से दुर्गन्ध आने लगी तब मिद्धार्थ देव ने आकर उन्हें प्रतिबोध दिग । [हरिवश पुराण, ६३/५४-६८] (ख) शुभचन्द्राचार्य के पाडवपुराण के अनुसार पहले सिद्धार्थ देव आकर वलभद्र को प्रतिवोध देने का प्रयास करता है किन्तु उन पर कोई प्रभाव नही पडता। बाद मे पाडव आते है और उन्हें स्नेहपूर्वक समझाने है तब वलभद्र का मोह कम होता है । - [पाडवपुराण, पर्व २२, श्लोक ८७८६] ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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