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________________ वासुदेव-वलभद्र का अवसान कृष्ण-बलराम दोनो भाई चलते-चलते हस्तिकल्प नगर के समीप जा पहुँचे । कृष्ण को उस समय क्षुधा सताने लगी। वलभद्र से कहा -भैया ! आप नगर मे जाकर भोजन ले आइये । बलभद्र ने जाते-जाते कहा -मैं जा रहा हूँ किन्तु तुम सावधान रहना। - -आप अपना भी ध्यान रखिए। ___-वैसे तो मैं ही काफी हूँ किन्तु यदि किसी विपत्ति में फंस गया तो सिंहनाद करूँगा। तुम तुरन्त चले आना। यह कहकर वलभद्र नगर मे चले गए। उस नगर का नरेश था घृतराष्ट्रपुत्र अच्छदन्त । श्रीकृष्ण-जरासंघ युद्ध मे कौरवो ने जरासध का साथ दिया था। इस कारण वह कृष्ण-बलराम से शत्रुता मानता था! - ५ नगर मे प्रवेश करके वलभद्र भोजन की तलाश करने लगे। उनके अनुपम रूप को देखकर नगरवासी चकित रह गए। वे सोचने लगे-- यह स्वय वलभद्र हैं, अथवा उन जैसा ही कोई और ? तभी विचार आया-द्वारका तो अग्नि मे जलकर नष्ट हो गई है । अवश्य ही यह बलभद्र हैं। बलभद्र ने अपनी नामाकित मुद्रिका देकर हलवाई से भोजन लिया। हलवाई अँगूठी को देखकर अचकचाया। उसने वह मुद्रिका राजकर्मचारियो को दे दी। राजकर्मचारी उसे राजा के पास ले गए और बोले ३३५
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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