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________________ श्रीकृष्ण-कथा-कुछ प्रेरक प्रसग ३२३ -बेटा | जन्म होने पर प्रसन्नता और मृत्यु पर दुख जो होता है। -जब मैं मरूंगा तो तुम्हे भी दुख होगा, तुम भी रोओगी। अबोध वालक की यह बात सुनकर माँ का हृदय भर आया। उसकी आँखो से ऑसू बहने लगे। पुत्र ने सहज वाल-चपलता से कहा -अभी तो मैं मरा नही और तुम रोने लगी। माँ ने लाल को अक मे भर लिया और बोली -मृत्यु से भी अधिक दुखदायी उसका विचार है । तू ऐसी बाते मत किया कर । मुझे कष्ट होता है। -अच्छा | मैं फिर कभी ऐसी वात नहीं करूंगा। पर यह तो वता दे कि क्या मैं कभी नही मरूंगा। माँ ने ठण्डी सॉस लेकर कहा -पुत्र ससार मे अमर कौन है ? जो पैदा हुआ है वह एक न एक दिन अवश्य मरेगा । पर अब तू जा, खेल । फिर कभी ऐसी वात मत करना। बालक थावच्चापुत्र खेल मे लग गया किन्तु मृत्यु शब्द उसके कोमल मानस से न निकल सका। समय गुजरता गया और वह युवक हो गया । एक वार भगवान अरिष्टनेमि की देशना सुनकर वह प्रतिबुद्ध हुआ और माता से सयम लेने का आग्रह करने लगा। माँ ने वहत समझाया-बुझाया पर जब वह न माना तो अन्त मे राजी हो गई और अभिनिष्क्रमण उत्सव मनाने हेतु छत्र, चंवर आदि कृष्ण के पास माँगने गई। उन्होने कहा -तुम चिन्ता न करो। मैं स्वय उसका अभिनिष्क्रमण उत्सव करूंगा। __ इसके पश्चात उसकी वैराग्यभावना की दृढता की परीक्षा करने के लिए पूछा -थावच्चापुत्र | तुम श्रमण बनने की अपेक्षा मेरी छत्रछाया मे रहकर काम-भोगो का सेवन करो। मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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