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________________ ३२० जैन कथामाला . भाग ३३ पालक को रात भर नीद नही आई। उसे वासुदेव के दर्पक अश्व को पाने की इच्छा थी। प्रात काल ही उठकर प्रभु के पास जा पहुंचा और जल्दी-जल्दी वदन करके लौट आया। शाम्ब की प्रवृत्ति दूसरे प्रकार की थी। उसे पुरस्कार का लोभ नही जागा । चैन से सोया। प्रात उठकर शैय्या से उतरा और वही से भक्तिभाव-विभोर होकर नमस्कार किया। श्रीकृष्ण के पास पहुँचकर पालक ने दर्पक अश्व की मांग की। वासुदेव ने जाकर भगवान से पूछा -प्रभो | आपको आज प्रात प्रथम वन्दन किसने किया-शाम्ब 'ने अथवा पालक ने ? -भाव से गाम्ब ने और द्रव्य से पालक ने ।-प्रभु ने बताया। निर्णय हो गया । पुरस्कार गाव को मिला । [३] ढढण मुनि श्रीकृष्ण की ढढणा नाम की रानी से उत्पन्न ढढणकुमार पुत्र था। वह भगवान अरिष्टनेमि की धर्मदेशना सुनकर प्रवजित हुआ । अल्प समय मे ही उग्र तपोसाधना करने लगा। एक वार श्रीकृष्ण ने पूछा -प्रभो । आपके १८००० श्रमणो मे सबसे अधिक उग्रतपस्वी और कठोर साधक कौन है ? सर्वज्ञ सदैव स्पष्ट और यथार्थवक्ता होते हैं। भगवान ने कहा-ढढण मुनि । चकित होकर वासुदेव ने पुन पूछा—अल्प समय मे ही ऐसी कौनसी कठोर साधना की, उन्होंने । -~-अलाभः परीपह को जीत लिया। अन्तसय कर्म के प्रबल उदय के कारण उसे निर्दोष भिक्षा नही मिलती, अत वह नहीं लेता। प्रभु का यह कथन सुनकर साधुओ ने जिज्ञासा की
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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