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________________ ३१४ जैन कथामाला : भाग ३३ एक बार प्रभु अरिष्टनेमि द्वारका आए तो कृष्ण ने पूछा-भगवान् | यह धन्वन्तरि और वैतरणि मरकर कहाँ जाएँगे? प्रभु ने वताया -धन्वन्तरि तो मरकर सातवे नरक के अप्रतिष्ठान नाम के नरकावास मे जन्म लेगा और वैतरणि विध्याचल अटवी मे युवा यूथपति वानर होगा। वहाँ एक साधु के निमित्त से आठवे सहस्रार देवलोक मे महद्धिक देव होगा। ___-वह केने प्रभो । वासुदेव ने जिज्ञासा की तो प्रभु ने समाधान दिया. -एक सार्थ के साथ कुछ मुनि जाएंगे। उनमे से एक मुनि के पग मे कॉटा लग जाएगा । अन्य मुनि वही रुकना चाहेगे तो वह मुनि यह कहकर उन्हे जाने के लिए प्रेरित करेगे कि मार्थ भ्रष्ट होकर सभी साधुओ के प्राणो पर वन आएगी। अत्यधिक आग्रह पर अन्य मुनि वहाँ से चले जाएंगे। उम मुनि को अकेला जगल मे देखकर इस वानर को जातिस्मरण ज्ञान होगा। इसे वैद्यक का ज्ञान भी याद आ जाएया। तव विगल्या और रोहिणी औषधियो- द्वारा यह मुनि के कॉटे को निकालकर घाव को भर देगा और तीन दिन का अनगन ग्रहण कर देवलोक मे उत्पन्न होगा। वहाँ से आकर मुनि को अन्य सावुओ के पास पहुँचा देगा। भगवान के वचनो पर विश्वास करके कृष्ण नगरी को लौट आए और प्रभु अन्यत्र विहार कर गए ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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