SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरिष्टनेमि की प्रव्रज्या पाचजन्य शख के तीन घोष से समस्त द्वारका नगरी स्तभित रह गई। श्रीकृष्ण और वलराम भी क्षु भित हो गए। एकाएक कृष्ण के हृदय मे आशका उठी-'क्या कोई दूसरा चक्रवर्ती उत्पन्न हो गया है अथवा इन्द्र स्वय द्वारका मे आया है। तभी अस्त्रागार के अधिकारी ने आकर उन्हे प्रणाम किया और बताया -स्वामी | आपके अनुज अरिष्टनेमि ने अस्त्रशाला मे आकर सुदर्शन चक्र को कुलाल चक्र की भॉति घुमा दिया, शाङ्ग धनुष को कमलनाल के समान मोड दिया, कौमुदी गदा एक साधारण छडी के समान घुमा डाली और पाचजन्य शख को इतने जोर से फूंका कि समस्त द्वारका भय से कॉप उठी। -तो क्या शखध्वनि अरिष्टनेमि ने की थी ? –कृष्ण ने साश्चर्य पूछा। ___-हाँ स्वामी | जिसकी प्रतिध्वनि अभी तक वातावरण मे गूज रही है। -'ठीक है | तुम जाओ।' कहकर कृष्ण ने अस्त्रागार अधिकारी तो विदा कर दिया किन्तु वे उसकी बात पर विश्वास न कर सके। इन समस्त दिव्यशस्त्रो का प्रयोग वासुदेव के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता। इतना वली दूसरा होता ही नही । तो क्या अरिष्टनेमि मुझ से भी अधिक बलवान है ? कृष्ण इस ऊहापोह मे पडे थे कि अरिष्टनेमि स्वय वहाँ आ गए। कृष्ण ने पूछा -~-क्या तुमने शख फूंका था ? २७६
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy