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________________ m शांब का विवाह गाव भीरुक को सदा तग करता रहता - कभी उसे मारता तो कभी द्यूत-क्रीडा मे उसका धन हरण कर लेता । भीरुक नाम से ही नही स्वभाव से भी भीरु ( डरपोक -कायर) था । शाव से तो उसका कुछ वश चलता नही - माता सत्यभामा से जाकर उसकी शिकायत करता । नित्य की शिकायतो से तग आकर एक दिन सत्यभामा ने कृष्ण से कहा - स्वामी । अव तो शाव बहुत उद्धत होता जाता है । - हॉ प्रिये । उसका भी कुछ न कुछ प्रबन्ध करना ही पडेगा । मैंने भी उसकी वहुत शिकायते सुनी है । सत्यभामा पति के आश्वासन से संतुष्ट हो गई । कृष्ण ने जाववती से शव की शिकायत की तो वह बोली - आप क्या कह रहे है, नाथ। मैंने तो उसके विरुद्ध कुछ नही सुना । वडा भद्र है वह तो । - सिहनी को तो अपना पुत्र सौम्य ही लगता है । उन हाथियो से पूछो जिनके मस्तक वह क्रीडा मात्र मे ही विदीर्ण कर देता है । - मुझे विश्वास नही है कि गाव ऐसा होगा । - तो मेरे साथ वेश बदल कर चलो और अपने पुत्र की करतूते अपनी आँखो से देखो । जाववती तुरन्त तैयार हो गई। कृष्ण ने अहीर का वेश बनाया और जाववती ने अहीरन का । दोनो छाछ (तक्र) वेचने चल दियेद्वारिका की गलियो मे । मार्ग मे स्वेच्छा विहारी शाव मिल गया । अहीरन के रूप को देखकर आकर्पित हुआ और वोला २५३ -
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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