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________________ - जिस समय कृष्ण भामा के साथ क्रीडा कर रहे थे उसी समय प्रद्युम्न ने लोगो के हृदय को प्रकम्पित करने वाली कृष्ण की भेरी उच्च स्वर से वजा दी। सत्यभामा का हृदय भयभीत होकर धकधक करने लगा। कृष्ण भी क्षुभिंत होकर सेवको से पूछ बैठे-भेरी किसने वजाई ? -रुक्मिणी-पुत्र प्रद्य म्न ने। –सेवको ने बताया। कृष्ण मन ही मन समझ गए कि 'प्रद्युम्न ने भामा को छल लिया । अव इसके भीरु पुत्र होगा क्योकि इसका हृदय भय से प्रकम्पित है।' किन्तु होनी को बलवान समझकर चुप हो गए। दूसरे दिन कृष्ण रुक्मिणी के महल मे गए। वहाँ उन्हे जाववती भी बैठी दिखाई दी। उसके कण्ठ मे पड़े दिव्यहार पर उनकी दृष्टि जम गई । अपनी ओर पति को निनिमेष दृष्टि से निहारते हुए देखकर उसने मुस्करा कर पूछा -क्या देख रहे है, स्वामी | मैं आपकी पत्नी जाबवती ही तो हूँ। बदल तो नही गई। -बदली तो नहीं परन्तु यह नया हार अवश्य पहन लिया है। कहाँ से मिला ? किसने दिया ? -कृष्ण ने भी मुसकरा कर पूछा। -आप ही ने तो दिया, कल ही रात । वडी जल्दी भूल गए। -हूँ | तो वह तुम ही थी ? ___-क्या किसी और को देने का विचार था ? मैं अनाधिकार ही ले आई ?--जाववती के इस प्रश्न का उत्तर दिया रुक्मिणी ने -हॉ, और क्या ? तुमने स्वामी की प्रिय-पत्नी के अधिकार का हनन कर लिया है । ऐसा तो नही करना चाहिए था। —क्या इसमे मेरा ही दोष है ? पुत्र की इच्छा तो सभी स्त्रियो को होती है। ___-होती तो है किन्तु तुमने अवसर शायद गलत चुना था। इसीलिए स्वामी रुष्ट है।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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