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________________ श्रीकृष्ण कथा-प्रद्य म्न का द्वारका आगमन २३७ .. -वासुदेव । मेरी पुत्री और आपकी पुत्र-वधू को कोई हर ले गया। ___-मैं कोई सर्वज्ञ तो हूँ नहीं । मेरे ही पुत्र प्रद्युम्न को कोई हर ले गया तो मैं कुछ न कर सका। सभी के मुख पर निरागा छा गई । तव प्रद्युम्न बोला -यदि आप लोगो की आज्ञा हो तो प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा मैं पता लगाऊँ। सभी ने स्वीकृति दे दी। प्रद्य म्न ने वह कन्या लाकर खडी कर दी। जव कृष्ण ने उसका विवाह प्रद्युम्न से करना चाहा तो उसने कह दिया-'यह छोटे भाई भानुक की स्त्री है।' भानुक के साथ उस का विवाह हो गया। प्रद्युम्न की इच्छा न होते हुए भी कृष्ण ने उसका विवाह कितनी ही खेचर कन्याओ से कर दिया। -त्रिषष्टि० ८६ ---उत्तर-पुराण ७२/७२-१६६ -वसुदेव हिडी, पीठिका ० उत्तरपुराण में प्रद्य म्न का चरित्र कुछ विस्तार से वर्णित है । युवा वस्था प्राप्त होने पर प्रद्युम्न ने अपनी सेवा और पराक्रम से विद्याधर पिता को प्रसन्न किया । उसकी प्रमुख घटनाएं निम्न है - (१) किसी दिन अग्निराज नाम का कालसभव (कालसवर का यहाँ यही नाम लिखा है) का शत्रु सेना लेकर चढ आया । तव देवदत्त (प्रद्युम्न का उत्तरपुराण मे यही नाम बताया गया है) ने उसे प्रताप रहित करके युद्ध मे जीत लिया और पिता के चरणो मे ला गिराया। (श्लोक ७२-७३) (२) उसके यौवन से काम-विकल होकर कचनमाला (विद्याधर कालसवर की पत्नी और प्रद्युम्न की पालक माता) उसे प्रज्ञप्ति विद्या देती है । जिसे वह शीघ्र ही सिद्ध कर लेना है। (श्लोक ७५-८१)
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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