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________________ २२६ जैन कथामाला भाग ३२ -यदि तुम मुझे वचन दो तो मै तुम्हे दोनो विद्याएं दे दूँ। तुम अजेय हो जाओगे। -हाँ, यह ठीक है। कामाध कनकमाला ने विना कुछ सोचे-विचारे प्रद्युम्न को दोनो विद्याएँ दे दी। उसने भी उन्हे शीघ्र ही सिद्ध कर किया। विद्यासिद्धि के पश्चात कनकमाला ने उसे वचन की याद दिलाई और पुन कामयाचना की तो प्रद्युम्न ने कह दिया, 'अव तो आपकी इच्छा पूरी होना विलकुल ही असभव है । आप मेरी गुरु हैं और गुरु के साथ ऐसा सबध होना सर्वथा अनुचित है।' किन्तु कनकमाला न उसकी बात की ओर ध्यान नहीं दिया। वह वार-बार आग्रह करने लगी। जब प्रद्य म्न ने देखा कि यह काम की गध मे अधी हो गई है तो वह उसे फटकार कर महल से निकल गया और कालाबुका नाम की वापिका के किनारे जा पहुँचा। वहाँ वह अपने भावी जीवन पर विचार करने लगा। अपना मनोरथ विफल होने पर कनकमाला नागिन की तरह बल खाने लगी। उसने त्रियाचरित्र प्रारभ किया। अपने हाथो से ही अपने वस्त्र फाड डाले, शरीर पर नाखूनो से खगेचे लगा ली और पुकार करने लगी। तुरन्त ही पुत्र दौडे आये। उसने रो-रोकर कहा'प्रद्युम्न ने बलात्कार की इच्छा से मेरी यह दशा कर दी है।' पुत्रो को प्रद्युम्न पर बडा क्रोध आया। वे उसे मारने के लिए दौड पडे । किन्तु गौरी और प्रज्ञप्ति महाविद्याओ के कारण वह अजेय था। उसने सभी को मौत की नीद मे सुला दिया। कालसवर भी पत्नी की बेइज्जती और पुत्रो की मृत्यु से लाल अगारा हो गया। प्रद्युम्न को मारने पहुँचा तो विद्या-बल से प्रद्युम्न ने उसे पराजित कर दिया । कालसवर उसके विद्याबल को देखकर हतप्रभ रह गया। चकित होकर उसने पूछा -प्रद्युम्न | तुम्हे इन महाविद्याओ की प्राप्ति कैसे हुई ? तव प्रद्युम्न ने सपूर्ण वृतान्त सुनाकर कहा-अपना कुटिल मनोरथ पूर्ण करने के लिए माता ने मुझे ये
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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