SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ जैन कथामाला भाग ३२ अत यह प्रचलित लोक-परम्परा के विपरीत पाँच पति वाली ही होगी । सभी ने मुनि का कथन स्वीकार किया किन्तु फिर भी एक शका रह ही गई - भगवन् । इस प्रकार तो स्वयं द्रौपदी और पाँचो पाडवों का लोकापवाद होगा ? - हाँ कुछ अशो मे तो होगा किन्तु फिर भी पूर्वकृत तपस्या कारण द्रौपदी की गणना सतियो मे ही होगी । - पच भर्तारी और सती ? – एक ओर से प्रश्न हुआ । - हाँ ऐसा ही । कर्म की लीला बहुत विचित्र है । मुनिश्री ने कहा और आकाश में उड गए । सभी ने उनका वदन किया और जब तक वे दिखाई दिये उनकी ओर देखते रहे । द्रौपदी का विवाह पाँचो पॉडवो' से हो गया । १ (क) पाडव चरित्र मे देवप्रभ सूरि ने द्रौपदी स्वयंवर में राधावेध का उल्लेख किया है | अर्जुन ने राधावेध किया | द्रौपदी के हृदय मे पाँचो पाडवो के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ । उसने अर्जुन के मे वरमाला डाली, वह पांचो पाडवो के गले दिसाई पडने लगी । सनी विचार मे पड गए तभी चारण श्रमण ने आकर बताया कि द्रौपदी निदानकृत है । उन्होंने द्रौपदी के पूर्वभव का भी वर्णन किया । (सर्ग ४) ( स ) इमी प्रकार वैदिक परम्परा के मान्य ग्रंथ महाभारत मे भी राधावेध का उल्लेख है— } f जव लाक्षागृह से निकल कर पाँचो पाडव और कुन्ती ब्राह्मण वेश राधावेध मे द्रौपदी को जीत लाया । बाहर से ही माँ को आवाज देकर कहा - माँ | मैं एक मे द्रुपद राजा की नगरी मे पहुँचे तो अर्जुन अद्भुत वस्तु लाया हूँ । कुन्ती ने बिना देखे ही कह दिया- पॉची भाई
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy