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________________ १६० जैन कथामाला : भाग ३२ लक्ष्मणा को जाववती के निकट का रत्नमय महल निवास के लिए प्राप्त हुआ और वह कृष्ण की अग्रमहिषी वनी ।' सौराष्ट्र देश मे आयुस्खरी नगरी का राजा था-राष्ट्रवर्द्धन । उसकी विजया नाम की रानी से एक पुत्र हुआ नमुचि और एक पुत्री सुसीमा। नमुचि ने अस्त्र विद्या सिद्ध करली थी इस कारण वह स्वय को अजेय समझता था और कृष्ण की आज्ञा भी नहीं मानता था। अनेक वार दूत उसके अभिमान की चर्चा वासुदेव से कर चुके थे । एक वार नमुचि अपनो वहन सुसीमा के साथ प्रभास तीर्थ मे स्नान करने गया । कृष्ण के दूता ने आकर समाचार दिया -स्वामी । इस समय नमुचि अपनी बहन सुसीमा के साथ प्रभास तीर्थ मे है और उसका शिविर बहुत पीछे पड़ा हुआ है। कृष्ण तुरन्त अग्रज बलराम के साथ वहाँ पहुचे और नमुचि को मारकर सुसीमा को अपने साथ द्वारका ले आए । विधिवत् विवाह करके लक्ष्मणा के निकटवर्ती महल मे रख दिया। पिता राष्ट्रवर्धन को यह समाचार ज्ञात हुआ तो उसने अपनी पुत्री सुसोमा के लिए दासी आदि परिवार और कृष्ण के लिए हाथी आदि विवाह का दहेज भेज दिया। X X X - X - मरदेश के राजा वीतभय ने अपनी गौरी नाम की पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया। श्रीकृष्ण ने उसे अग्रमहिषियो मे स्थान दिया और सुसीमा के निकटवर्ती मल उसको निवासार्थ दिया । अरिष्टपुर के राजा हिरण्यनाभ की पुत्री पद्मावती के स्वयवर मे
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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