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________________ अन्य पटरानियाँ देवर्षि नारद ने द्वारका की राजसभा मे प्रवेश किया तो कृष्ण ने उठकर उनका स्वागत किया और उचित आसन पर विठाया। वातचीत के बीच मे वासुदेव पूछ बैठे -देवपि । आप तो ढाई द्वीप मे धूमते ही है । कोई आश्चर्यजनक वस्तु दिखाई पडी हो तो बताइये । और देवर्षि नारद तो ऐसे ही प्रग्नो का उत्तर देने में स्वय को धन्य समझते थे । तुरन्त ही वोल पडे -हाँ वासुदेव । जाबवती सर्वाधिक आश्चर्यकारी रत्न है । -कुछ परिचय भी मिल जाए, मुनिवर । -वैताव्यगिरि पर जववान्नगर का बलवान विद्याधर राजा जबवान है । उसकी स्त्री शिवाचन्द्रा से एक पुत्र विश्वक्सेन और पुत्री जाववती हुई । वह नित्य गगास्नान करने जाती है। -नारदजी ने पूरा परिचय दे दिया। ___नारदजी तो ससम्मान विदा होकर अपनी राह लगे और वासुदेव ने कुछ चुने हुए वीरो के साथ गगा नदी की राह पकडी। गगा किनारे पहुँचकर देखा तो जाबवती हसिनी के समान गगा जल मे किलोल कर रही थी। अन्य मखियाँ कुछ तो जल मे उतर कर उसकी क्रीडा मे सहायक थी और कुछ किनारे पर खडी उत्साहित कर रही थी। कृष्ण सोचने लगे--'जैसा नारदजी ने कहा-वैसा ही है।' तभी जाववती की दृष्टि कृष्ण पर पड गई। उन्हे देखते ही वह चित्रलिखी सी रह गई। जल क्रीडा वन्द हो गई । सखियो की दृष्टि १८८
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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