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________________ जन कथामाला भाग ३२ गई । सत्यभामा ने पूरा मन्दिर छान मारा किन्तु उमे रुक्मिणी कही दिवाई न दी। वेदिका पर बैठी निश्चल मूर्ति को देखकर कहने लगी -अहो इस थोदेवी का रूप कैसा मनोहर है । इसको बनाने वाला कारीगर कितना कुगल है ? इसके बाद वह अजलिवद्ध होकर खड़ी हो गई और प्रार्थना करने लगी -हे श्रीदेवी | मुझ पर प्रसन्न होकर इतनी कृपा करो कि मैं रुक्मिणी को अपनी रूपलक्ष्मी से पराजित कर दूं। इसीलिए तुम्हारी 'पूजा अर्चना कर रही हूँ। और सत्यभामा बडी भक्तिभाव मे उसकी पूजा करने लगी। रुक्मिणी को बडी जोर की हंसी आई किन्तु उसने हास्य के ज्वार को अन्दर ही दवा दिया । उसका गरीर भी कॉपा। यदि जरा सी चेष्टा बदल जाती तो खेल ही विगड जाता किन्तु वह पापाणप्रतिमा के समान निष्पद वैठी रही। ___ सत्यभामा ने बडे मनोयोग से पूजा की और सिर नवाकर श्रीकृष्ण के पास पहुँची । खीझकर बोली -आपकी पत्नी कहाँ है ? -श्रीदेवी के मन्दिर मे । --कृष्ण ने भोलेपन में उत्तर दिया । ___-आप नहीं बताना चाहते तो मत बताइये झूठ क्यो वोलते -नहीं प्रिये । मैं झूठ नहीं बोलता, रुक्मिणी श्रीदेवी के मन्दिर मे ही है। -मैंने तो वहाँ का कौना-कौना छान माग। --तुमसे अवश्य ही कोई भूल हुई है। -हाँ । हाँ ।। मैं तो अन्धी हूँ, आप ही चलकर दिखा दीजिए। - -चलो | मैं अभी दिखाए देता हूँ। दोनो पति-पत्नी श्रीदेवी के मन्दिर मे जा पहुँचे । दूर से ही पति
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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