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________________ १८२ जैन कायामाला भाग ३२ दूत मे यह संदेश पाकर कृष्ण ने मन ही मन कुडिनपुर जाने का निश्चय कर लिया। बहन के मुख पर अलकती निरागा और उसकी अप्रत्यागित चुप्पी ने रुक्मि को सावधान कर दिया। उसने गीघ्रातिशीघ्र वह्न का विवाह करने में ही भलाई समझी । उसने भी दूत भेजकर गिशुपाल को आमत्रित किया। शिशुपाल मेना महित कुडिनपुर आ पहुँचा । श्रीकृष्ण भी अग्रज वलराम सहित पूर्व निर्धारित स्थान पर आए । धात्री रुक्मिणी को उसकी मखियो सहित नागपूजा के लिए नगर के बाहर उद्यान मे लाई। कृष्ण वहाँ पहले से ही खड़े थे। उन्होने आगे बढकर पहले ही धात्री का अभिवादन किया । घात्री के सकेत से रुक्मिणी रथ मे वैठ गई। रथ चल पडा । जव रय कुछ दूर चला गया तव धात्री और सखियो ने पुकार मचाई-दौटो । दौडो ।। पकडो 11 कृष्ण रुक्मिणी को हर कर लिए जा रहे है। कृष्ण ने भी पाचजन्य गख फूक दिया और वलराम ने अपना सुघोष शख । गखो की गभीर ध्वनि को सुनकर एकवारगी सभी चकित रह गए। किन्तु मवाल था इज्जत का। राजा रुक्मि की वह्न और शिशुपाल को मिलने वाली रुक्मिणी का हरण हो जाय और वे चुप बैठे रहे ऐसा कैसे हो सकता था। रुक्मि और शिशुपाल दोनो ही विशाल सेना लेकर पीछे दौड पडे । विशाल सेना देखकर रुक्मिणी का दिल बैठने लगा । बोली -नाथ । मेरा भाई और यह शिशुपाल वडे पराक्रमी और कर हैं। इनके साथ अन्य वीर भी हैं और आप दोनो भाई अकेले । अब क्या होगा? मुस्करा कर कृष्ण ने आश्वासन दिया-क्या रुक्मि और क्या शिशुपाल ? मेरा वल देखो।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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