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________________ राजा सोमक समझ गया कि वात किसी भी प्रकार वन नही सकती । वात का वतगड वन रहा है । वह वहाँ से चुपचाप उठा और समुद्रविजय से विदा लेकर चल दिया । सोमक तो अपमानित होकर चला गया किन्तु दशार्ह राजा समुद्रविजय के हृदय में चिता व्याप्त हो गई । दूसरे ही दिन उन्होने अपने समस्त भाइयों को एकत्र करके निमित्तज्ञ क्रोष्टुकि को बुलाकर पूछा - महाशय ! हमारा त्रिखडेश्वर जरासंध से विरोध हो गया है । इसका क्या परिणाम होगा ? — अहकारी और बली पुरुषो से विग्रह का एक ही परिणाम होता है - युद्ध | वही होगा । - क्रोष्टुकि ने उत्तर दिया । - वह तो ठीक है, मै भी समझता हूँ किन्तु युद्ध का परिणाम क्या होगा ? - पराक्रमी कृष्ण-बलराम जरासव का प्राणान्त कर देगे । क्रोष्टुक की इस वात को सुनकर सभी उपस्थित जन सतुष्ट हुए । समुद्रविजय गम्भीरतापूर्वक कुछ देर तक सोचते रहे और फिर वोले-भद्र | हमारे साधन अल्प है और जरासंध के अत्यधिक, फिर तुम्हारा कथन सत्य कैसे होगा ? यदि सत्य हो भी गया तो व्यर्थ ही मथुरा की प्रजा पीडित होगी । ---- ज्येष्ठ दशार्ह की वात युक्तियुक्त थी । क्रोष्टुकि ने पुन गणित लगाया और वोला - महाराज | आप इस समय सपरिवार पश्चिम दिशा के समुद्र की ओर चल जाइये । आप उसी दिशा मे एक नगरी वसाकर निवास करिए | आपके पश्चिम दिशा मे गमन करते ही शत्रुओ का क्षय प्रारम्भ हो जायगा । - यह भी बता दीजिए कि नगरी किस स्थान पर वसाई जाय ? - मार्ग मे चलते हुए जिस स्थान पर सत्यभामा दो पुत्रो को जन्म दे वही आप नगरी वसाकर नि.गक होकर रहिए ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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