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________________ ( १६ ) और अपना विराट रूप दिवाकर तथा उनमे गौरवो आदि को मरा दिखा कर युद्ध के लिए अर्जुन को प्रेरित करते हैं। जैन परपरा में महाभारत युद्ध के अतिरिक्त जरामघ-कृष्ण युद्ध मे भी पाडव कृष्ण की ओर मे जरासव के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित होते है । महाभारत युद्ध का कारण है - दुर्योधन का अत्यधिक मान जोर पाडवो को सुई की नोक के बराबर भी भूमि न देना लेकिन जगमध ने कृष्ण को नष्ट करने के लिए ही आक्रमण किया था। (४) वैदिक परपरानुमोदित महाभारत युद्ध मे कृष्ण का ऐमा ल्प आता है जिने मभ्य भापा मे चतुराई या राजनीति कहा जाता है और असभ्य मापा मे छल-प्रपत्र । वे पितामह भीप्म, गुरु द्रोणाचार्य, दानवीर कर्ण आदि सभी महारथियों का छलपूर्वक नाश कराते है, जवकि जैन परपरा मे कृष्ण का नीतिनिपुण तो बताया है किन्तु उन्होने कही भी छल नहीं किया । सदैव अपने साहस और पराक्रम से ही विरोधी का पराभव किया । (५) महाभारत मे दुर्योधन को पापी और अत्याचारी दिखाया गया है । वह त क्रीडा मे विजय प्राप्त करके द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करना चाहता है और कृष्ण उसकी साड़ी असीमित रूप से लम्बी करके -उनकी लाज वचाते है। जवकि जैन परम्परा मे दुर्योधन का ऐसा स्प नहीं है । वह छू त क्रीडा मे पाडवो का राज्य तो जीत लेता है और द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयाम भी करता है । लेकिन बीर बढाने का अद्भुत कार्य श्रीकृष्ण द्वारा नही कराया गया है। (६) वैदिक परम्परा मे पाडव भी स्वतन्त्र राजा है और कृष्ण भी। उनमे केवल मंत्री और पारिवारिक मवध है । जैन परम्परा मे पारिवारिक सम्बन्धो के नाय-साय पाडवो को कृष्ण के अधीन दिखाया गया है। उन्ही की आना से वे हस्तिनापुर के राज्य को त्याग कर दक्षिण समुद्रतट पर पाडु मथुरा नगरी वमा कर उनमे निवास करते हैं । (७) वैदिक परम्परानुसार कृष्ण, विष्णु के सम्पूर्ण सोलह कला सम्पन्न अवतार, त्रिलोकीनाथ है, जबकि जैन परम्परानुसार वे समस्त दक्षिण भरतार्द्ध के स्वामी त्रिखण्डेश्वर है।।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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