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________________ इसके पश्चात् उसने सोमक नाम के राजा को बुलाया और उसे सम्पूर्ण स्थिति समझाकर कहा -तुम राजा समुद्रविजय के पास जाओ और कृष्ण-बलराम को अपने साथ यहाँ लिवा लाओ। स्वामी की आज्ञा पाकर राजा सोमक मथुरा आ पहुंचा। उसने मथुरा की राजसभा मे उपस्थित होकर राजा समुद्रविजय से कहा -राजन् । मै महाराज जरासध का सन्देश लेकर आया हूँ। समुद्रविजय ने आदरपूर्वक राजा सोमक को आसन पर बिठाकर 'पूछा -कहिए, क्या सन्देश है ? -कृष्ण-बलराम को हमे सौप दो। - -क्यो ? क्या करेगे आप उन दोनो का ? -वे हमारे स्वामी की पुत्री जीवयशा के पति कस के घातक है, इसलिए उन्हे उचित दण्ड दिया जायगा। यह सुनकर एक बार तो सपूर्ण सभा कॉप गई। जरासंध की क्रूरता से वे भलीभॉति परिचित थे। समुद्रविजय ने दृढतापूर्वक 'कहा -राजा सोमक! दण्ड अपराधी को दिया जाता है। कम ने कृष्णबलराम के निरपराध भाइयो की हत्या की थी। इसलिए भाइयो के हत्यारे कस को इन्होने मार दिया तो कोई अपराध नही किया । ये दोनो निर्दोष है। ___ --कृष्ण-बलराम तो अपराधी है दी, उनके माय ही साथ वसुदेव भी अपराधी है। उन्होने कस को दिया हुआ अपना वचन भग किया और सातवे गर्भ का गोपन किया। अव तक कृष्ण चुप बैठे थे। किन्तु पिता पर किए गए आक्षेप के कारण उनकी भ्रकुटि टेढी हो गई। उनके मुख पर क्रोध के भाव झलकने लगे । वे वोलना ही चाहते थे कि समुद्रविजय का दृढ स्वर सुनाई पडा
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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