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________________ जैन कथामाला भाग ३२ १६४ अव भी सभा शान्त थी । मानो सवको साँप मूँघ गया "चाणूर ने पुन अभिमानपूर्ण शब्दो मे कहा - मैं तो समझता था कोई न कोई वीर होगा ही किन्तु यहाँ उपस्थित सभी जन कायर है । चाणूर की गर्वोक्ति कृष्ण से न सही गई । वे सिह के समान अखाडे मे कूद पड़े और चाणूर के सामने ताल ठोक दी । आस्फोट का स्वर दिशाओ मे गूँज गया । चाणूर और कृष्ण अखाड़े मे आमनेसामने खडे थे । 'यह चाणूर आयु और वल मे बहुत बढा हुआ है। यह मल्ल युद्ध से अपनी जीविका कमाने वाला और वडा कर है । इसके सम्मुख दुधमुहा वालक ! यह मुकाविला अनुचित है । यह नही होना चाहिए ? - दर्शको ने कोलाहल किया । - ऐसा ही सुकुमार है यह बालक तो अखाडे मे क्यो कूद पड़ा ? -कस ने कुपित होकर कहा । - किन्तु यह युद्ध असमान है । युद्ध वरावर वालो मे उचित होता - दर्शको की आवाज आई । है । कस ने सबको शान्त करते हुए कहा - आप लोगो का कथन यथार्थ है । किन्तु मल्ल युद्ध के नियमानुसार स्वेच्छा से अखाडे मे उतरे हुए मल्लो मे युद्ध होना अनिवार्य हैं | यदि इस बालक को पीडा हो तो मुझ से प्रार्थना करे मैं इसे छुडा दूंगा । इस समय तो कुश्ती होगी ही । कस के आश्वासन से दर्शक चुप हो गए । कृष्ण ने उच्च स्वर से दर्शको को सुनाते हुए कहा — यह चाणूर मल्ल राजपिड खाकर हाथी के समान मतवाला हो गया है । मैं गायो का दूध पीने वाला गोकुल का निवासी बालक हूँ । किन्तु जिस प्रकार सिह गावक मत्त गजराज को मार गिराता है उसी प्रकार मै चाणूर को भूमि मे सुला दूंगा । आप लोग देखिए ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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