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________________ १४६ जैन कथामाला भाग ३२ होने लगा। कभी वे वैल की पूछ पकड लेते तो एक डग भी आगे न वढने देते । अनुज के ऐसे बल को देखकर अग्रज का हृदय प्रसन्नता से उछल-उछल पडता। वल वढने के साथ-साथ इनकी देह काति और मुन्दरता में भी अपार वृद्धि हुई । गोपिकाएँ उनकी ओर आकर्षित होने लगी। वे कृष्ण से मिलने और वाते करने के बहाने ढूंढती । कृष्ण को बीच मे रखकर अनेक गोपियाँ नृत्य-गीत आदि का रास रचाती। कृष्ण भी 'पीछे न रहते । वे भी उनके साथ मधुर आलाप करते, नृत्य-गीत आदि मे भाग लेते । वशी की मधुर तान सुनाकर उन्हे रिझाते । जिस समय कृष्ण इस प्रकार की रास-लीलाएँ करते वलदेव हाथो की ताली बजा-वजाकर नाट्याचार्य का कर्तव्य निभाते । इस प्रकार कृष्ण-बलदेव दोनो का समय गोकुल मे सुख और आनन्द से व्यतीत हो रहा था। कृष्ण गोपियो के कठहार, साथी ग्वाल-वालो के नायक और नन्दयशोदा की ऑखो के तारे थे। सम्पूर्ण गोकुल ही कृष्ण का दीवाना था। मनुष्य तो मनुष्य गौएँ भी उनसे प्रेम करती। उनकी वॉसुरी की तान पर दौडी आती और अपना प्रेम-प्रदर्शित करती। श्रीकृष्ण ग्यारह वर्ष की आयु मे ही गोकुल के नायक बन चुके थे। -त्रिषष्टि० ८/५ --उत्तरपुराण ७०।४१२-४२६
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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