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________________ श्रीकृष्ण-कथा-वासुदेव श्रीकृष्ण का जन्म घोर वर्षा की । श्रीकृष्ण ने गोवर्द्धन पर्वत को अपनी अगुली पर उठा कर सम्पूर्ण ब्रज-वामियो व उनके गोधन आदि की रक्षा की। श्रीकृष्ण के इस अतुल प्रभाव से इन्द्र भयभीत हो गया और उसने स्वयं ही वी बन्द कर दी।.. इस घटना के फलस्वरूप गो-पूजा का प्रचलन हो गया। सम्पूर्ण ब्रज वासियों ने उत्साहपूर्वक गो-पूजा की। (श्रीमद्भागवत, दशम स्कघ, अध्याय २५-२६) उत्तरपुराण के वर्णन मे कुछ भिन्नता हैमुलसा के स्थान पर वैश्यपुत्री-जलका यह नाम दिया है और नैगमैपी देव इन्द्र की प्रेरणा से देवकी के पुत्रो को हरण करता है । .. (श्लोक ३८४-३८६) इम बालक.(श्रीकृष्ण) को नद गोप के पास ले जाने की घटना का वर्णन करते हुए कहा है कि.- वलभद्र (कृष्ण के बड़े भाई इसे लेकर चले और वसुदेव ने उन पर छत्र लगाया --(बरसात से बचने के लिए), नगर के देवता ने बैल का स्प धारण किया और अपने. सीगो पर दो दैदीप्यमान मणियाँ लगाई । इस प्रकार अँधेरा दूर करता हुआ आगेआगे चलने लगा। ___- (श्लोक ३६०-३६२) नन्द गोप इन्हे. रास्ते मे-आते हुए मिले। उनके अक मे एक कन्या थी ।। नद गोप ने बताया- 'मेरी-स्त्री ने- भूत देवता की आरावना की थी। उसने यह कन्या देकर कहा कि मैं इमे आप तक पहुँचा दूं।' पिता-पुत्र ने बालक, नन्द गोप को दिवा और कन्या.लेकर लौट आए ।. ........ - . . . . . . . . . . (श्लोक ३६९-४००), - कम द्वारा कन्चा की नाक छेड़ने के बाद इतना उल्लेख और है कि क्म ने उसे तलघर में वाय द्वारा पोपित करवाया। बडी होकर उम कन्या ने सुब्रता आर्या के पास दीक्षा ले ली । वह-विध्याचल पर्वत पर एक जगह तपस्या करने लगी। वनवामी उने वनदेवी समझ कर - पूजने लगे। एक समय उसे वाव खा गया। वह तो मरकर स्वर्ग चली गई किन्तु वे लोग इने विन्ध्यवासिनी देवी के नाम मे पूजने लगे। (श्लोक ४०८-४११)
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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