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________________ श्रीकृष्ण-कथा १२७ राजा देवक से विदा होकर कस, वसुदेव नन्द आदि के साथ मथुरा लौट आया । उसने अपना हर्ष प्रगट करने के लिए बहुत बडा उत्सव मनाने का निश्चय किया । X X कस की आज्ञा से मथुरा नगरी दुलहिन की तरह सज गई। सभी ओर उल्लास और राग-रग छाया हुआ था । नगरवासियो के मुख चमक रहे थे और हृदय झूम रहे थे । -कस का छल ----- अन्तपुर मे कस की रानी जीवयशा भी बेभान थी मदिरा के नशे मे । उसके कदम लडखडा रहे थे । आँखे मूंदी जा रही थी । वह मदिरा के नशे में चूर थी । उसी समय मुनि अतिमुक्तक' पारणे हेतु पधारे । जीवयशा की यह दशा देखकर वे लौटने लगे तो मदान्ध रानी वोल 1 पडी - अरे देवर | कैसे लौट चले ? आज तो आनन्द मनाने का दिन है। आओ मेरे साथ नाचो, गाओ । और मदिरा के नशे में चूर जीवयशा उनके सामने आ खड़ी हुई । निस्पृह सत रुक गए । जीवयशा ही पुन बोली - नही वोलते । अरे कुछ तो कहो। इसे पीओ, मजा आ जायेगा । जीवयशा ने मदिरा का पात्र आगे बढा दिया । मौन होकर मुनि रानी की इन अभद्र चेष्टाओ पर विचार कर रहे थे । रानी की विह्नलता बढती जा रही थी । उस पर मदिरा का रंग चढा हुआ था । वह कुत्सित चेष्टाएँ करने लगी । निस्पृह मुनि ने बहुत प्रयास किया कि किसी प्रकार उसके चगुल से निकल जायँ किन्तु कहाँ मुनिश्री का १ यह कस के पिता महाराज उग्रसेन के पुत्र थे । जव कस ने वलात् मथुरा पर अपना शासन स्थापित करके पिता को वन्दी बना लिया था तव इन्होने विरक्त होकर श्रामणी दीक्षा स्वीकार कर ली थी । -संपादक
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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