SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैन कथामाला भाग ३१ अग्रज की आज्ञा पाकर वसुदेव अधेड स्त्री धनवती के साथ जाने ___ को तत्पर हुए तभी समुद्रविजय ने कहा हम लोग शौर्यपुर मे तुम्हारी प्रतीक्षा करेगे।। वसुदेव ने सिर झुकाकर उसकी इच्छा स्वीकार की और धनवती के माथ गगनवल्लभ नगर जा पहुँचे। विद्याधर पति काचनदष्ट्र ने अपनी पुत्री वालचन्द्रा का विवाह बड़े सम्मानपूर्वक वसुदेव के साथ कर दिया। राजा समुद्रविजय आदि सभी यादव कस के साय शौर्यपुर लौट आए और उत्सुकतापूर्वक वसुदेव की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ दिन गगनवल्लभ नगर मे रहकर वसुदेव अपनी स्त्री वालचन्द्रा को लेकर वहाँ से चल दिये। उन्होने अन्य स्थानो से भी अपनी सभी स्त्रियो को साथ लिया और विद्याधरो के पक्तिवद्ध विमानो के साथ शौर्यपुर जा पहुँचे। आगे बढ कर अग्रज समुद्रविजय ने अनुज का स्वागत किया और दृढ आलिगन मे बाँध लिया। कुछ दिन तक सभी विद्याधरो का स्वागत सम्मान करके विदा कर दिया गया। एकान्त मे समुद्रविजय ने वसुदेव से पूछा -यहाँ से निकले तुम्हे सौ वर्ष हो गए। किस प्रकार व्यतीत हुआ यह समय। वसुदेव ने इन सौ वर्षों का पूरा हाल कह सुनाया। भाभियो ने परिहास किया -देवरजी । क्या किया परदेश मे रहकर, हमारे लिए क्या __ लाये?
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy