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________________ वसुदेव-कनकवती विवाह अस्खलित गति वाले वसुदेव अदृश्य रूप से राजमहल के प्रथम कक्ष मे पहुँचे। वहाँ उन्हे बहुत सी स्त्रियो का समूह दिखाई दिया । उसे उल्लघन करते दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवे, छठे और सातवे कक्ष मे जा पहुंचे। उनकी नजरे कनकवती को ढूँढ रही थी किन्तु वह कही भी दिखाई न दी। वे एक स्थान पर खडे सोचने लगे-'क्या करूँ ? किस तरह कनकवती का पता लगाऊँ ? किसी से पूछता हूँ तो मेरा रहस्य खुल जायगा।' वसुदेव यही सोच रहे थे कि उत्तम वेश वाली एक दासी पीछे के द्वार से आई। उसे देखते ही वहाँ उपस्थित अन्य स्त्रियो ने पूछा -राजकुमारी कनकवती कहाँ है और क्या कर रही है ? -अभी तो प्रमदवन के प्रासाद (महल) मे अकेली बैठी है।नवागन्तुक दासी ने उत्तर दिया । राजकुमारी का पता मिल चुका था वसुदेव को। तुरन्त वहाँ से चले और प्रमदवन जा पहुंचे। प्रमदवन मे सात-मजिला प्रासाद था। एक-एक करके सातो मजिल पार हुई तो एक सिहासन पर बैठी राजकुमारी दिखाई दी। हाथ मे उन्ही का चित्रपट था। वह बारवार चित्र देखती और लम्बी-लम्बी साँसे भरती । ____ कुमार वसुदेव उसके सम्मुख जाकर प्रगट हो गये। कनकवती की दृष्टि सामने खडे पुरुष की ओर उठी। वह सभ्रमित होकर कभी ह८
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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