SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ कुवेर से भेंट अशोक वृक्ष के पल्लव जैसे रंग की नयनाभिराम रक्तवर्णी चोच, । चरण और लोचन वाला एक राजहस राजकुमारी कनकवती के महल पर आ बैठा । गले मे सुन्दर स्वर्ण घुरुओ की माला तथा उसकी मद-मद चाल ने राजकुमारी का मन मोह लिया। राजकुमारी कनकवती पेढालपुर नगर के राजा हरिश्चन्द्र और रानी लक्ष्मीवती की अनुपम सुन्दरी पुत्री थी। जिस समय वह उत्पन्न हुई, पूर्व जन्म के स्नेह के कारण धनपति कुवेर ने कनक (स्वर्ण) की वर्षा की, इसी कारण उसका नाम कनकवती रखा गया। कनकवती जितनी रूपवती थी उतनी ही गुणवती भी। स्त्रियोचित चौसठ कलाओ मे वह निष्णात थी। उसकी दृष्टि राजहस के कठ पर जाकर अटक गई। विचार करने लगी-'यह राजहस अवश्य ही किसी पुण्यवान पुरुप का पालतू है। अन्यया गले मे स्वर्ण माला कहाँ से आती ?' राजहस तब तक गौख मे उतर आया और धीरे-धीरे इस प्रकार चहलकदमी करने लगा मानो नृत्य ही कर रहा हो । राजकुमारी का मन उससे विनोद करने को मचल उठा। हसगामिनी कनकवती उस हस को पकडने के लिए धीरे-धीरे अचक-पचक कदम रखती हुई बढीकही आवाज न हो जाय और हस उड जाय । हस भी कुछ कम नही था वह भी कनकवती की गतिविधियो पर नजर रखे था । ज्यो ही राजपुत्री ने उसे पकडने के लिए हाथ वढाया त्यो ही फुदक कर आगे वढ गया। ६२
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy