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श्रीकृष्ण -कथा-देवी का वचन
तो तुम्हे प्रियगुमुन्दरी से लन्न स्वीकार है ?-देवी ने पुष्टि चाही। ___-आपकी इच्छा और विधि के विधान उल्लघन कैसे हो सकता है ? मुझे स्वीकार है । -वसुदेव ने स्वीकृति दी।
देवी ने भी वसुदेव की इच्छा मान ली। उसने वचन दिया-'जव भी तुम मुझे बुलाओगे, मै आऊँगी।'
इसके बाद देवी ने वसुदेव का हाथ पकडा और अशोक वन से उठाकर वन्धुमती के शयन कक्ष मे ले आई।
देवी अतर्धान हो गई और वसुदेव वन्धुमती की बगल में लेट गये।
प्रात काल द्वारपाल के साथ वसुदेवकुमार प्रियगुसुन्दरी के पास गये । राजकुमारी उन्हे देखकर कमलिनी की भॉति खिल गई। वसुदेव ने बडे हर्प के साथ गाधर्व विवाह किया। __ द्वारपाल ने अठारह दिन वाद उन दोनो के विवाह की बात राजा एणीपुत्र को वताई।
राजा इस विवाह से प्रसन्न हुआ और वसुदेव तथा प्रियगुसुन्दरी दोनो को अपने महल मे ले गया। वसुदेव ओर प्रियगुसुन्दरी-दोनो पति-पत्नी सुख से रहने लगे।
-त्रिषष्टि० ८२ -वसुदेव हिंडी, बधुमती लम्भक
प्रियगुसुन्दरी लम्भक