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________________ जैन कयामाला भाग ३१ ___--मै यह सोच रहा हूँ कि आप कीन है और मेरे पास किस प्रयोजन से आई हे ?-वसुदेव ने उत्तर दिया। ___-वही बताने आई हूँ। मेरे साथ चलो। यह कहकर देवी ने उनका हाथ पकड़ा और अशोक वन मे ले गई । वहाँ पहुँच कर कहने लगी-मेरी वात ध्यान देकर सुनो। __इस भरतक्षेत्र के श्रीचदन नाम के नगर पर अमोधरेता नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी थी चारुमति और पुत्र चारुचन्द्र। उसी नगर में रहती थी वेश्या अनतसेना और उसकी पुत्री कामपताका । राज अमोघरेता ने एक वार यन किया। यन के उपाध्याय थे कौशिक और तृणविन्दु । यजमडप मे आयोजन किया गया नृत्य का। नृत्य करती हुई वेश्यापुत्री कामपताका ने अपने नृत्य कौशल से राजकुमार चारुचन्द्र और उपाध्याय कौगिक दोनो का मन मोह लिया। कुमार चारुचन्द्र ने कामपताका को अपने वश मे करके विवाह कर लिया। दोनो उपाध्यायो ने राजा को वहत से मधुर और स्वादिष्ट फल दिये। वे फल राजा ने जीवन मे पहली बार देखे थे । उसने पूछा-'ऐसे सुन्दर अद्भुत फल आप कहाँ से लाये ? तव उन्होने हरिवश की उत्पत्ति और भोगभूमि से लाये गये कल्पवृक्ष का वर्णन किया। __ कौशिक ने यज्ञ समाप्त होने पर वेश्यापुत्री कासपताका को माँगा। उसे विश्वास था कि उसकी इच्छा अवश्य पूरी होगी किन्तु राजा ने कह दिया—'कामपताका ने कुमार चारुचन्द्र के साथ विवाह कर लिया है । अब दूसरा पति होना असभव है ।' उपाध्याय कौशिक ने क्रोध मे आकर श्राप दिया-'उसके साथ क्रीडा करते ही कुमार की मृत्यु हो जायेगी।' महामति राजा अमोघरेता को इसी कारण वैराग्य हो गया । अपने पुत्र चारुचन्द्र को राज्य देकर वह तापस के आश्रम मे जाकर रहने लगा। उसके साथ उसकी अज्ञात गर्भा रानी भी थी। समय पाकर
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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