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________________ श्रीकृष्ण - कथा -- एक कोटि द्रव्य दान का विचित्र परिणाम मेरा नाम बालचन्द्रा है । आपके प्रभाव से ही मुझे विद्या सिद्ध हुई है । अव मैं आपके वश मे हूँ । आप चाहे तो मेरा परिणय करे । अथवा मैं क्या करूँ मुझे बताइये | ७७ वसुदेव ने उसका सारा वृतान्त सुनकर उत्तर दिया - सुन्दरी । मुझे कुछ नही चाहिए | तुम्हे विद्या सिद्ध हो गई । - तुम्हारा परिश्रम सफल हुआ । मुझे इसी मे प्रसन्नता है । वालचन्द्रा ने जब वहुत आग्रह किया तो वसुदेव ने कहा - इस वेग वती को विद्या दो । - वेगवती । तुम मेरे साथ गगनवल्लभ नगर चलो और विद्या ग्रहण करो । वालचन्द्रा ने वेगवती से कहा । किन्तु वेगवती पति से विलग होना नही चाहती थी । बडी कठिनाई से तो उसका मिलन हो पाया था । उसके हृदय के एक कोने में विद्या प्राप्ति की लालसा भी थी क्योकि मुनिराज का उल्लघन हो जसे वह विद्याहीन हो चुकी थी । उसने वहुत आग्रह किया कि बालचन्द्रा उसे यही विद्या प्रदान करे परन्तु जव वालचन्द्रा ने विवगता दिखाई तो वह भी मजबूर होगई । पति की आज्ञा लेकर वेगवती तो वालचन्द्रा के साथ गगनवल्लभ नगर चली गई और वसुदेव तापस के आश्रम में रहने लगे । - त्रिषष्टि० ८ / २ -वसुदेव हिडी, बालचन्द्रा लम्भक
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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