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________________ श्रीकृष्ण-कथा -- एक कोटि द्रव्य दान का विचित्र परिणाम ७५ करते रहे और फिर वहाँ से चल कर एक तापस के आश्रम मे जा 'पहुँचे । तापम के आश्रम में दोनो सुखपूर्वक रहने लगे । X X X एक दिन वेगवती को नदी मे बहती हुई एक युवती दिखाई पडी । उसका अग अग पाग से बँधा हुआ था । उसकी प्रेरणा से वसुदेव ने उस - कन्या को नदी मे निकाला और वघनमुक्त किया । कुछ समय बाद - सचेत होकर कन्या वसुदेव से बोली - हे महात्मन् | आपके प्रभाव से मेरी विद्या आज सिद्ध हो गई । - मैं आपकी बहुत कृतज्ञ हूँ । वसुदेव ने पूछा ? - सुन्दरी । तुम हो कौन और विद्यासिद्धि कारण क्या है कन्या ने अपना परिचय बताया वैताढ्य गिरि पर गगनवल्लभ नगर है । इसमे पहले विद्याधर "राजा नमि का वगधर कोई विद्युर्हष्ट राजा राज्य करता था । उसने किसी मुनि को कायोत्सर्ग में लीन देखा । घोर पाप का उदय आगया था उसका इसीलिए परम गात और निस्पृही मुनि को देखते ही अपने अनुचरो से बोला- 'यह कोई उत्पाती है । इसे वरुणालय मे ले जाकर 'मार डालो ।' अनुचरो को स्वामी की आज्ञा मिली और वे मुनिराज को मारने लगे । परम धीर मुनिश्री इस उपसर्ग से तनिक भी खिन्न न हुए वरन् शुक्लध्यान मे लीन हो गये । उपसर्ग होते रहे और मुनि गुणस्थान चढते रहे । नवाँ, दावाँ और वारहवाँ पार कर तेरहवाँ गुणस्थान प्राप्त कर लिया । वे केवली हो गये । उनका कैवल्योत्सव मनाने धरणेन्द्र आया तो उसने सभी अनुचर विद्याधरो ओर विद्यह ष्ट्र को विद्याभ्रष्ट कर दिया । विद्याहीन विद्याधर का जीवन तृणवत् होता है। अनुचरो ने धरणेन्द्र ने विनती की
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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