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________________ ० नगर ठठ्ठो दलाच्यो | पडीयो पिंडीच्या उपर जा इ, बापडो घाल्यो बंदीखाना मांही ॥ ७० ॥ उप दाहाडे अधिक आरंभ कीधो, जांजा जीवने जा पीदुःख दीधो ॥ पहेलो पिंडिन पिंजर घाले, पबी बीजाने बंधन चाले ॥ ७१ ॥ आण वरतावी पग दीधो, केटले एक दाहाने काबुल लीधो ॥ मेहतें मुलतान पहोतानो कीधो, क टके कानो जाइ जल पीधो ॥ ७२ ॥ लाहो र खुरसाण खंधार बंगालो, बलक बखारो पठा एा वालो | तारा तंबोलने ईशणपुरवालो, सूर चंद सुधी चढीयो वेढालो ॥ ७३ ॥ आगें तो साहामो समुद्र आयो, जेहने पासें तो जोर च लायो || देश सघला शरण कीधा, बारे बाद शा बांधीने लीधा ॥ ७४ ॥ गामने गढें था बेसारे, बलीयो बादशाह बांधेते बारे, ॥ वा टे वेढालो नाज शालो, वडो वागीयो ईडर वालो || ७५ ॥ चारेही सरखा बत्र धरावे, प शाहवडी विमल कहावे || देश जीतीने दान वजायो, बारे बादशाह बांधीने लायो ॥ ७६ ॥ नीमने वसवा पाटण दीधो, चंदरावे आवीने
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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