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________________ नाइ ॥ स्त्रीयें स्त्रीने बेटीयें बेटी, पहेरयां बखत र जुलम पेटी ॥ ७२ ॥ सामा सामी तिहां क डाका थाय, जुनो वरणन कह्यो नविजाय ॥ श्र न्यो अन्यथी बलिया बहु शूर, जेवुं सायरनुं च तो पूर ||७३ || साहमा सामी त्याहां प्रगट्युं बे वेर, जैम पवनने सागरनी लहेर ॥ मिथ्या सा चने थाय लमाइ, शोकना सामो नाव वमाइ ॥ ७४ ॥ ज्ञानना सामो अज्ञान आवे, सुमति कुमतिने पानी हठावे ॥ अचेत चेतना सामो डे बे, धोख प्रकाश सामो निडेबे ॥ ७५ ॥ स मऊ द्रोहने हठावे जीहां, काम विचार आफले तिहां ॥ जुक्तिना सामी विषया कहेवाय, सुकृ त सामो मद चमी आय ॥ ७६ ॥ मबर सामो लाज तिहां कहिये, हिंसाना सामो संजम लहि ये ॥ अंधक करतां अकलजी बलिया, अकाम जाइयें उन्माद बलिया ॥ ७७ ॥ मा हिंसा ने पाबो हठावे, शीयल क्रोधने बांधीने लावे ॥ दया निर्दयने हठावे जटमां, मुनि कुवचन उता रे घटमां ॥ ७८ ॥ अहंकार माफी विनयथी मां गे, रीश सहनने पाय त्याहां लागे ॥ द्रोही सुमता
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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