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________________ न लाधुं, बेटो रीशाणो थोडुंशुं खाधुं ॥ गंडी ए ठुने अलगो जइ बेठो, माता मन मांहे संदेह पेठो ॥७॥ मीठे वचनें करी माता मनावे, ए टले आकाशें इंद्राणी पावे ॥ ऋषन रीशाणो आवो मनावो, अपणे नाचिने गुण गीत गावो ॥८॥ आदीश्वर पागल इंद्राणी आवे, नवर स नाटकनां बाजा बजावे ॥ अहो आडंबर ना इनाइ, धन धन सुकृत तेहनी कमाइ ॥९॥ नाटके नानडिअो खशाल कीधो, एके इंद्राणी ये जळगें लीधोबीजी मिलीने बोकलो दीधो, त्री जी कहे इम | कधिो ॥ १०॥ पुढे प्रनु केम रीशाणो कीधो, ऋषन मनावी माताने दीधो॥ मरुदेवा पूजे केम रीशाणा आइ, शाक सघलां मोमां केम लाइ ॥ ११॥ पिरस्या पापड नजी आंने नाजी, शाक बनाव्या चतुराइ जाजी का कडी कंकोमा कारेलां केला, काची केरीने करवंदां नेलां॥१२॥ कोलां कालिंगा करपटा नेलां, बा फ्यां बत्रीशे शाक शमला ॥ शॉक पाक ते सघलां दीधां, आपें इंद्राणीयें हाथ शुं कीधां॥ ॥ १३ ॥ जुगलिया त्यारे कांइ न जाणे,सुर छ
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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