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________________ ५० यें ॥ विषया बेटी पांचेनी बेहेनी, लाज न राखे जगतमा केनी ॥ २२ ॥ त्रीजो नानेरो लामक वा यो, क्रोध प्रवृत्ति कुथी जायो || हिंसा नारी तो तेने परणावे, पांच बेटाने बेटी एक थावे ॥ ॥ २३ ॥ कुवचन अहंकार ममताने इरखा, री शालो नाइ पांचे ए सरखा, प्रदया नामें बे पांचेनी बेहेनी, दया न आणे जगतमां केनी ॥ ॥ २४ ॥ चोथो लोनते जगत विख्यातो, तृष्णा नारीथी फिरे नित मातो ॥ पांच बेटा ते तृष्णा ने धाय, लालच चाहने प्राह कहेवाय || २५ ॥ चेन स्वारथ माडीना जाया, ममता बेहेनीथी सरवेनें माया ॥ मान पांचमो नानेरो नाइ, न मावती साधें कीधी सगाइ ॥ २६ ॥ पाखंड परपंच अशुद्ध धूत, कुबुद्धि पांचे नाइनो ए जूद, बठी दीकरी नर्मणा माही, नर्मावती रा पी कुखेथी जाइ ॥ २७ ॥ बेटाने घर बेटा त्यां कीधा, सरवाले तीस एकठा लीधा, पट दी करी वहुवारू पांच, जीती न शके आपी कोइ लांच ॥ २८ ॥ एकताळीस जानुं हेतज एहवं, सरवे जगतने वखाण्या जेहबुं ॥ राणी परवरती स
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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