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________________ अंगोल, नमण आवे ते अोलखा जोल॥५०॥ चंदन तलावडी शीतलगया, जिणमां लोटे थाय सुकोमल काया ॥ अशुन नामना कर्म खपावे, तिहाथी सहु संघ सिद्ध वम पावे ॥५१॥ नदी सत्रुजी न्हावाने जाय, स्नान करीने पावन थाय॥ तीर्थ नूमिका स्वबज जाणी, प्राची वाहनी न दीय वखाणी ॥५२॥ तीर्थ यात्रादि धर्मनी कर णी, नवजल पयोधि पार उतरणी ॥ अनुक्रमे पामे ते गुणतणी श्रेणी, मुक्तिमंदिरनी जे जे नि सरणी ॥५३॥ संघपतियें धर्मना कारज कीधां, नाट नाजकन बहु दानदाधा॥धन्य श्रावक द या प्रतिपाल, संघपति कंठे ठवी वरमाल॥५४॥ देहरा देहरान पार न जाणु, जिन पमिमा त्यां केती वखाj ॥ इणीपरें सुजस नीशान बजाइ, आव्या गिरनारे हर्ष वधाइ ॥ ५५ ॥ जादववं श शेवादेवी नंद, बाल ब्रह्मचारी नेम जिणंद ॥ तेहनी यात्रा कीधी बहु नाव, जईने प्रणम्या माता अंबाय ॥५६॥ मृगराज देखी गज द्वर पलाय, शंखध्वनी सुणी पन्नग जाय ॥ तेम गि रि सेवनथी पातक बूटे, अष्टकर्मना बंधन तूटे
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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