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________________ भाद्रजमाहे,एहशिलोको गायो ऊबाहे॥६६॥ अथ श्रीनेमिनाथ जीको शिलोको लिख्यते ॥सिद्धि बुद्धि दाता ब्रह्मानी बेटी, बाल कुंभारी विद्यानी पेटी॥ हंसवाहनी जगमां वि ख्याता, अदर आपोने सरसती माता ॥१॥ नेमनी केरो केशुं शिलोको, एक मनथी सोनल जो लोको ॥ जंबुद्वीपना नरतमां जाएं, नगर सौरीपुर सरग समाj॥२॥ चवुटा चोराशी बारे दरवाजा, राज्य करे तिहां यदुवंशी राजा॥ समुद्र विजयघर शेवादेवी राणी, शीयले सीताने रूपें इंद्राणी ॥३॥ तेह तणी जे कुखें अवतरी था, सहस अठोत्तर लदाणेनरिया ॥ खारो खा टोने मीठो जे आहार, गर्नने हेते कीधो परिहा र ॥४॥ घोर घटाए जलधर गाजे, सजल लीलांबर पुहवी बिराजे ॥ वादल दलमांहे वीज जबूके, दणदण अंतरमेह टवूके ॥५॥ पूरण नदीये आव्याने पूर, पूरण पुहवी पसरयो अंकूर ॥ ऋतु मनोहर दादुर टहके, नरयां सरोवर लेहेरे ते लहके ॥६॥ ब्बी हरियांनी
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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