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________________ ૧૨ प्रधान साहामुं जोयुं ते ठाय ॥ २३ ॥ अजय कुमार तव कहे एम, प्रभु तम घरे आवशे प्रेम ॥ नद्रा नूपने पाय लागीने, सात दिवसनी अ वध मांगीने ॥ २४ ॥ शीख लेइने नद्रा सिधा वी, रूमी मेहेलनी रचना रचावी ॥ परिकर ले इने नृप मंनसार, पहोता शालिनद्र शेठने वा र || २५ || वेगें आगलथी चाल्या वधान, ख री नांखे जइ खबर गान || जोपें जिमाडी ह रख उपाइ, वारू तेहने दीधी वधाइ ॥ २६ ॥ मेहेलनी रचना जोतां महाराव, इचरज पां मीने मनशुं कुलाय ॥ अहो हो हंशुं अ मरापुर यायो, खांतियें जल्योने नेदन पायो ॥ ॥ २७ ॥ जिम तिम करीने बीजी जूइ जाय, त्रिजे माले तो दिग मूड थाय ॥ जोये नचुंते नगणने जोडी, जाणे के नग्या सूरज कोडी ॥ ॥ २८ ॥ सहु साथने बेसाडी तिहां, नद्रा जइ नाखे पुत्र बे जहां ॥ श्रेणिक आव्या वे मेहे ल मकारी, वेगें तिद्वां यावो तजीने नारी ॥ ॥ २९ ॥ गेलें गुमानी कहे ते गाजी, मुजने तु मे शुं पुगे वो माजी ॥ अधिक लेइने वखारें
SR No.010305
Book TitleJain Shiloka Sangraha Pustika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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