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________________ (३१.) पाठ १५वी प्रसन्भाय की समझ : जिसके योग में पवित्र शास्त्र का उच्चा रण न हो सके उसे असझाय कहते हैं वो इस प्रकार हैं. १. अस्थि, (हड्डी) मांस, रुधिर, विष्टा ' और पंचेन्द्रिय का क्लेवर जिस मकान की हद में पड़ा हो उस हद्द में शास्त्र नहीं पढना ( असज्झाय ). २ राजा अथवा बड़े माननीय मनुष्य का ' मृत्यु होजावे तव सज्झाय. 1 ३ महान युद्ध होता हो तब उसकी हद में असझाय ४ वड़ा तारा गिरे या उल्कापात हो तव असज्झाय. ५ चन्द्र सूर्य का ग्रहण रहे वहां तक अस ज्झाय. " ६ दिशाएं धुंधुली हो जावे तब असंज्झाय ७ स्वाति नक्षत्र के पीछे और आद्रा नक्षत्रके पहिले कढ़ाका, गाजवीज, छींटे. बारीस होवे तो उतने समय तक: सन्काय · *"
SR No.010304
Book TitleJain Shikshan Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Prakashak Karyalaya Byavar
PublisherJain Pustak Prakashak Karyalaya Byavar
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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