SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४) ७ गुरु जो कुछ आदेश करे उसका आदर पूर्वक स्वीकार करना. . ८ गुरु को अवर्णवाद नहीं बोलना, और कोई चोलते हो तो उसको रोकना. ९ गुरु को रोगादिक की तकलीफ होवे उसका यथाशक्य उपचार करना. १० गुरु को ज्ञानादिक के योग्य साधन प्राप्त कर देना. ११ गुरु को ज्ञानाभ्यास में अंतराय नहीं डालना. १२ गुरु का बहुमान करके उनके गुणों को प्रकाश में लाना.. १३ गुरु अपने आसन से उठकर अन्यत्र जावे अथवा वहार में अपने आसन पर आवे जब खड़े हो जाना मगर बैठे नहीं रहना. १४ गुरु की वैयावच्च सेवाभाक्त योग्य रीति से करना. १५ गुरु की कल्पती जरूरत की चीज के वेराने में संकुचित मन नहीं रखना.
SR No.010304
Book TitleJain Shikshan Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Prakashak Karyalaya Byavar
PublisherJain Pustak Prakashak Karyalaya Byavar
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy