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________________ [ २० ] आचार्य हेमचन्द्र “यह असि, मसी, कृषि आदि व्यवस्थाका प्रवर्तन सावद्यसपाप है, फिरभी स्वामी ऋपभदेवने अपना कर्तव्य जानकर इसका प्रवर्तन किया। [एतच्च सर्व सावद्य-मपि लोकान कम्पया। स्वामी प्रवर्तयामास, जानन कर्त्तव्यमात्मन ॥] -त्रिपष्टि शलाका पु० चरित्र, ११२।६७१ "मनसा, वाचा, कर्मगा जीव हिंसा न करना, न कराना, न करतेका अनुमोदन करना यह अभयदान है। उनके जीवनपर्यायका नाश न करना, दुःख पैदा न करना, संक्लेश न देना यह अभयदान है।" [ भवत्यभयदान तु, जीवाना वधवर्जनम् । मनोवाक्काय करण-कारणान मतैरपि ॥ तत्पर्यायक्षयाटु खोत्पादात् सक्लेशतस्त्रिया। वघम्य वर्जनतेष्व-भयदान तदुच्यते ॥ ] अपभ चरित्र १५७-१६ धर्म-अधिकरण "निश्चय नयकी दृष्टिसे माता-पिता आदिका विनय करने रूप सतताभ्यासमें सम्यक्-दर्शन आदिकी आराधना नहीं होती इसलिए वह धर्मका अनुष्ठान नहीं है । व्यवहार-नय, स्थूलदृष्टि या लोकदृष्टिसे वह युक्त है।"
SR No.010303
Book TitleJain Shastra sammat Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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