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________________ द्रौपदी का चीर हरण ८७ चमत्कार दिखाई दिया। सभासद आँखें फाड फाड कर देख रहे थे। दुशासन द्रौपदी की साडी पकड कर खीचने लगा, ज्यो ज्यो वह खीचता जाता, त्यों त्यो साडी बढती जाती । यह चमत्कार देख कर लोगो मे कपकपी सी फैल गई। निर्लज्ज दुर्योधन भी पहले तो आखे फाड़ फाड कर देखता रहा, फिर बोला-“दु शासन ! देखी द्रौपदी की करतूत, न जाने कितनी साढियां पहन कर आई है। जरा जल्दी जल्दी खीच ।" दुशासन ने तेजी से खीचना प्रारम्भ किया। पर और अलौकिक शोभा वाली साढी का ढेर लग गया। आखिर दुशासन खीचता खीचता थक गया, सारा शरीर पसीने से तर हो गया, अन्त मे उसके हाथो मे खीचने की शक्ति नही रही और वह हाँपता हुआ अलग हट कर बैठ गया । इतने मे भीम सेन उठा, उसके होंट मारे क्रोध के फडक । रहे थे मुख मण्डल तम तमा रहा था, नेत्रो से ज्वाला निकल ' रही थी। ऊचे स्वर मे उसने प्रतिज्ञा की- "उपस्थित सज्जनो। १ मैं शपथ पूर्वक कहता हूँ कि जब तक भरत वश पर बट्टा लगाने वाले और मानवता को कलंकित करने वाले इस नीच दुशासन की इन भुजाओ को न तोड दूंगा. जिनसे इसने सती द्रौपदी को अपमानित किया है, तब तक इस शरीर का त्याग नही करूगा। जब तक रणभूमि मे इस की छाती नही तोड दूगा, तव तक चैन नही लूगा।" भीम सेन की इस भीष्म प्रतिज्ञा को सुन कर सभा । सद थर्रा गए। . अचानक उसी समय सियार बोलने लगे, गधो के रेकने और मासाहारी चील कौवो के चीखने की आवाज सुनाई दी। इस प्रकार की मनहूस आवाजें कितनी ही देरी तक आती रही। का . इन लक्षणो से धृतराष्ट्र समझ गए कि जो कुछ हुआ है. वह उस के पुत्रो के लिए बहुत ही दुखदायी होगा। सम्भव है । उनके कुल का विनाश हो जाये। इस लिए उन्हो ने शीघ्र ही . इस । घटना पर पानी फेरने का उपाय करना आवश्यक समझा। इन्हो __ने द्रौपदी को अपने पास बुलाया। उसे समझाया, प्रेम पूर्वक म उसे सान्त्वना दी। और जो हुआ उसे भूल जाने की प्रेरणा दी।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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