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________________ ___ -- “बाजो की दुष्टता से उन के इतिहास पर- ही कालिख पुत जाये। अपने इस बूढे अन्धे बाप की प्रतिष्ठता का तो ध्यान रक्खा होता।" दुर्योधन को फटकारने के पश्चात विदुर जी सभा सदों को सम्बोधित करते हुए बोले-“अपने को हार चुकने के पश्चात युधिष्ठिर को कोई अधिकार नही कि द्रौपदी को वाजी पर लगाए,, साथ ही सती द्रौपदी कोई किसी की सम्पत्ति नही है, वह जीवन सगिनी है, तो इसका यह अर्थ 'नहीं हो जाता कि उसे पशुओ की भाँति किसी को सौंप दिया जाय। पाचाल राज्य की राजकुमारी को जुए मे-घसीटने का पाप करने का अधिकार किसी को नही है, उस का अपना स्वत. का अस्तित्व है । अतएव द्रौपदी को अपमानित करना एक घोर अन्याय है । मुझे ऐसा प्रतीत होता है, कि कौरवों का अन्त समीप आ गया है। इस लिए अपने ही हित की वाते उन्हे कडवी लगने लगी हैं, और अपते ही हाथो अपने लिए गड्ढा खोद रहे हैं। आप लोग ऐसे अत्याचार को रोकने का प्रयत्न कीजिए, आखिर आप भी तो इन्सान है, क्या हमारे बहू बेटियां नहीं हैं ? क्या हम सभी पगु बने हुए इस जघन्य, व पाशविक अत्याचार को देखते रहेगे। यह खेल नही कपट जाल है।" उपस्थित लोगों में से कितने ही चिल्ला उठे-"विदुर जी ठीक कहते हैं, द्रौपदी को बाजी पर नहीं लगाया जा सकता वह नही हारी गई। यह युधिष्ठिर की अनाधिकार चेप्टा थी " विदुर जी की बातो और लोगों के शोर को सुन कर दुर्योधन बौखला उठा, उसने अपने सारथी, प्रातिकामी को बुला कर कहा “विदुर, तो हम से ही जलते है और पाण्डवो से डरते हैं, तुम्हे तो कोई डर नही ? अभी रनवास मे जाओ, और उससे कहो कि अब वह हमारी दासी है, तत्काल यहा आये। तुम उसे साथ ले कर यहां शीघ्र प्राओ।" इस समय चारो ओर से आवाजे आई.-"यह अन्याय है अत्याचार है। नारी का अपमान घोर पाप है, छि. छि. यही है राजाओ का न्याय ?''
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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