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________________ जैन महाभारत युधिष्टिर बोले- " शकुनि, कदाचित ग्राप हम भाईयो में फट डालने का असफल प्रयत्न कर रहे है । अधर्म तो मानो तुम्हारी रंग रंग मे कूट कूट कर भरा है। तुम क्या जानो कि हम पात्र भाईयो के सम्बन्ध कैसे है ?" - युद्ध के प्रवाह में पार लगाने वाली नाव के समान, महान, तेजस्वी, पराक्रम में अद्वितीय, विजय श्री का प्रिय, सर्वगुण सम्पन्न, भ्राता अर्जुन को अब की बार में बाजी पर लगाता हूँ ।" ७२ → शकुनि ने निर्लज्जता से कहा- वाह युधिष्ठिर महाराव वाह | बाजी लगाने वाला हो तो ऐसा हो पर - ř भाग्यवान की जीत है, भाग्य हीन की हार । होनी होत टले नही, यह कर्मो की मार ॥ पासे फेक कर बोला - " लीजिए महाराज अर्जुन भी आप के हाथ से हार गया, अब क्या भीम को बाज़ी पर लगाईयेगा 7 कोई दैविक शक्ति 'मानो युधिष्ठिर को पतन की ओर खीचे ले जा रही थी, वे स्वयं अपने को इस विनाशक खेल से रोकने का प्रयत्न करते, पर अपने पर काबू करने में असफल हो जाते, अपने कर्मों के फल से बधे हुए युधिष्ठिर ने कहा- हा युद्ध मे जो हमारा गुग्रा है, असुरो को भयभीत करने वाला वज्रधारी, इन्द्र सदृश तेजवान, महावली, अद्वितीय साहसी, श्रीर पाण्डव कुल गौरव, अपने भाई भीम को दावपर लगाता हू युधिष्ठिर की बात समाप्त होते होते शकुनि ने पासा फेंक दिया और युधिष्ठिर भीम को भी हार गए । 37 1 1 शकुनि बोला- 'तो ग्राप ही रह गए, कहिए क्या विचार है?" युधिष्ठिर ने कहा - "हा । इस वार मैं स्वयं अपने आप का दाव पर लगाता हूं जो हो, पांसा फेको ।” . “लो, यह जीता" कहते हुए शकुनि ने पांसा फेंका और बाजी भी ले गया । दुर्योधन प्रसन्नता के मारे उछल पड़ा, वह खडा हुआ और
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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