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________________ ६८' जैन महाभारत डटनी है या भाग जाना है ।" " शकुनि ने युधिष्ठिर को उत्तेजित होकर कहा "पाण्डवों ने कभी भाग जाना नहीं सीखा। पासा फेको ।" युधिष्ठिर ने उत्तेजित होकर कहा । H किन्तु उन्हे यह पता नही था कि यह चौसर का खेल उन से सारी सम्पति छीनने के लिए रचा गया है । और जो पासे, फेके जा रहे है, वे विशेषतया युधिष्ठिर को ही बरबाद करने की इच्छा से बनवाये गए हैं । उन्हे मुख्यता इसी खेल के लिए बनवाया गया था, जिन को फेकने का तरीका और जिन से हर वार जीतने का उपाय केवल शकुनि को ही ज्ञात था । ' उन पाँसों से शकुनि जब चाहे जीत, जब चाहे हार सकता था, एक प्रकार से उन की कला शकुनि के हाथ में थी । इस लिए खेल मे जीतने का श्रेय चाहें किसी को मिले, पर वास्तव मे श्रेय था उस को, जिसने यह अदभुत पाँसे बनाये थे । . यह बात साफ होने पर भी कि यह खेल साबित होगा, कुल वृद्ध उसे रोक नही पा रहे थे । पर उदासी छाई हुई थी । कौरव राजकुमार बडे चाव से देख रहे थे । झगड़े की जड उन के चेहरो ज्यों ही पासों को हाथ लगाया गया, विदूर जो ने कहा“यंत्र का रहस्य उसका स्वामी ही जानता है, युधिष्ठर, खेलने से पहले अपने अपने को तोल लो ।” परन्तु खेल आरम्भ हो गया । पहले रत्नो की बाज़ी लगी, फिर मोने चादी के खजानो की, उसके बाद रथों व घोडो की, तीनो दाव युधिष्ठिर हार गए । तव चतुर शकुनि ने एक वार युधिष्ठिर को जिताना चाहा ताकि युधिष्ठिर दत्तचित्त हो कर खेलें में लगे रहे, खेल बन्द न करदे । समस्त आभूषण दाव पर लगाए गए, उस वार युधिष्ठिर जीत गए । फिर क्या था युधिष्ठिर का हौसला वढ गया, वह जोश से खेलने लगे । उसी दम भीष्म जी बोले Wed 1
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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