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________________ जैन महाभारत शाली है कि उनका सामना करना लोहे के चने चबाना है। उन्हें तो किसी अन्य ही उपाय से जीता जा सकता है।” कर्ण ने दम्भ पूर्ण शब्दो में कहा- "मामा | आप भी कैसी बाते करते हैं' रण भूमि मे तो जाने दीजिए, पाण्डवो मे एक भी ऐसा नही जो मेरे सामने आ कर जीवित बच कर जा सके।" दुर्योधन बीच मे बोल उठा- “पर यदि किसी प्रकार विना लडाई झगडे के ही उन्हे परास्त किया जा सके तो इससे वढ कर अच्छी बात और हो क्यों सकती है ?" कर्ण तव कुछ ढीला पडा और बोला-"हा, यदि कोई ऐसी भी तरकीव हो सकती है, तो.अवश्य की जानी चाहिए, युद्ध करना ही आवश्यक तो नही है।" फिर दोनो शकुनि का मुह देखने लगे, जैसे उनके मौन नेत्र शकुनि से अन्य उपाय पूछ रहे हो। शकुनि कुछ देर विचार मग्न रहा और अन्त मे चुटकी बजा कर वदे हर्ष से वोला - 'युधिष्ठिर को चौसर खेलने का तो शौक है ही, बस उसे आप चौसर खेलने को आमंत्रित करे, इधर से मैं रहू फिर दुर्योधन | मैं उनकी जीत कर दिखला दू गा। वस चौसर के खेलका प्रवन्ध तुम पर रहा ।" वात मुनते ही कर्ण और दुय?न के मुख मण्डल पूनो के चार की भाँति खिल उठ। कितनी ही देर तक वे आपस मे शकुनि कं बुद्धि की प्रशशाए करते रहे और उसके पश्चात चौसर खेलनं वे षड़यन्त्र का जाल बिछाने पर विचार करने लगे। x x x x x x x दुर्योधन और शकुनि घृत्तराष्ट्र के पास गए। शकुनि । बात छेडी- "राजन ! देखिये तो आप का वेटा दुर्योधन शोक प्रो चिन्ता के कारण पीला सा पडता जा रहा है। उसके शरीर के। रक्त ही सूख गया प्रतीत होता है। क्या आप को अपने वेटे की में चिन्ता नहीं है। ऐसी भी क्या बात कि आप अपने बेटे की चिन्त । का कारण तक न पूछे ?
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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