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________________ ५४ जैन महाभारत दुर्योधन की यह दशा देख कर उसके मामा शकुनि से न रहा गया, पूछ बैठा- “दुर्योधन तुम निशि दिन दुबले होते जा रहे हो। कोई रोग भी प्रतीत नही होता, प्रत्येक प्रकार की सुख सम्पदा तुम्हे प्राप्त है, फिर इस प्रकार रोगी जैसी दशा का क्या कारण है ? ___ "मामा ! आप तो जानते ही हैं, पाण्डव कितनी उन्नति कर रहे हैं, वे सारे. क्षेत्र पर छा गए है। उनके यग की दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है.। इस बार जब अर्जुन, के पुत्र के जन्मोत्सव में मैं - गया था, आप तो मेरे साथ थे ही। मेरा कितना उपहास किया गया, कितना अपमानित हुश्शा मैं । इस सब के होते मैं जिऊ तो कैसे ! मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि मैं पतन की ओर जा रहा है । और एक एक बात मे पाण्डव मुझे परास्त करते जा रहे हैं। व्यथित दुर्योधन ने अपने मनं, की, चात कह -सुनाई। राम में ऐसा - शकुनि-ते--दुर्योधन कोः सान्त्वना देते हुए कहा- "तुम्हारे मन मे, बसी चिन्ता को समझ गया, पर मेरी समझ मे यह नहीं कि. पाण्डवों की उन्नति से तुम पर कौन सी मुसीवत का पहाड, टूट पडा ? पाण्डवो के पास जो कुछ है. वह तुम्हारा ही दिया हुआ तो है। तुम उन से किस वात मे, कम हो.? पाण्डव तुम्हारे ही भाई हैं, उन की वृद्धि को देख कर तुम्हे चिन्ता होना आश्चर्य की बात है।" ...'"मामा जी ! आप भी ऐसी वातें करते हैं ?.- दुर्योधन ने शकुनि की बातो. पर. शका प्रगट करते हुए कहा- आप को तो ऐसीबातें नही कहनी चाहिए। . जब कि आप जानते हैं, कि मैं अपमान पूर्ण जीवन व्यतीत करने से जीवित जल. मरना अच्छा समझता हूं। द्रौपदी ने मुझे कितने ही लोगो के सामने अपमानित किया, पर मैं उसका कुछ न कर सका, अभी तो इतना ही है कि द्रौपदी मुझे अन्धा कह कर पुकारती है पर पाण्डवो की इसी प्रकार उन्नति होती रही तो एक दिन मुझे वे लोग भरी सभागो मे गालिया दिया करेगे, उनके बच्चे तक मुझे अपमानित किया करेंगे, और क्या पता वह भी दिन आजाए कि पाण्डव, इतनी शक्ति प्राप्त करले। मुझे हस्तिना पुर से भी निकाल कर वाहर खड़ा करदें।"
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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