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________________ 31 * पचासवां परिच्छेद 86000008885859 >> द्रोणाचार्य का अन्त 90068985800000 युद्ध के चौदहवे दिन जब सायकाल के उपरान्त भी युद्ध जारी रहा और बडी बडी मशालों के प्रकाश मे दोनो शोर की सेनाएं जूझती रही । -5 कर्ण और घटोत्कच मे उस रात बडा ही भयानक युद्ध हुआ घटोत्कच और उसकी सेना ने इतनी भयंकर वाण वर्षा की कि दुर्योधन के झुण्ड के झुण्ड सैनिक मारे गए । प्रलय सा मच गया । यह देख कर दुर्योधन का दिल कापने लगा । न किसी वरना यह कर्ण को कौरव वीरो ने कर्ण से अनुरोध किया कि किसी तरह आज घटोत्कच का काम तमाम कर दिया जाय । राक्षस हमारी सेना को तवाह कर डालेगा । घटोत्कच ने भी इतनी पीडा पहुंचाई थी कि वह भी क्रुद्ध हो रहा था । कौरवो का अनुरोध सुनकर उसकी उत्तेजना और भी प्रबल हो उठी। वह आपे मे न रहा और उसने देवराज इन्द्र द्वारा दी हुई उस शक्तिअस्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर कर दिया, जिसे उसने बड े यत्न से अर्जुन का वध करने के लिए सम्भाल कर रक्खा हुआ था । घटोत्कच मारा गया। कौरव सेना की जान मे जान श्राई । पाण्डवो की सेना को बडा शोक हुआ 1 इतने पर भी युद्ध बन्द नही हुया । द्रोणाचार्य वाणो की इतनी तीव्र बौछार कर रहे थे कि पाण्डव सैनिक गाजर मूली की भाति
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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